मोठ में कोनसी स्प्रे करें | मोठ की फसल में रोग और नियंत्रण

मोठ में कोनसी स्प्रे करें – देशभर के अंदर खरीफ फसलो का सीजन चल रहा है. ऐसे में किसान साथियो के अंदर फसलो में होने वाले रोगों के लिए चिंता बनी हुई है . आज की इस पोस्ट के अंदर आप सब के लिए लेकर के आये है मोठ की फसल के अंदर कब और कौनसी स्प्रे हम करे . मोठ में किट और रोग नियंत्रण कैसे करे

मोठ में कोनसी स्प्रे करें

दीमक के लिए मोठ में सप्रे : दीमक पौधों की जड़ों को काटकर बहुत नुकसान पहुंचाते हैं, जिससे कुछ ही दिनों में पौधा सूख जाता है। दीमक से बचाव के लिए 20-25 किलोग्राम क्विनालफॉस या क्लोरपाइरीफॉस चूर्ण प्रति हेक्टेयर की दर से अंतिम जुताई के समय मिट्टी में मिला देना चाहिए तथा बीज बोने से पहले उन्हें 2 मिली क्लोरपाइरीफॉस प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करके बोना चाहिए।

कातरा रोग के लिए स्प्रे : कटारा की इल्ली फसल की प्रारंभिक अवस्था में पौधों को काटकर नुकसान पहुंचाती है। इसके नियंत्रण के लिए खेत के आसपास के क्षेत्र को साफ रखना चाहिए तथा इल्ली का प्रकोप होने पर 20-25 किलोग्राम मिथाइल पैराथियान चूर्ण प्रति हेक्टेयर का प्रयोग करना चाहिए।

जैसिडस रोग मोठ में : यह कीट हरे रंग का होता है तथा पौधों की पत्तियों से रस चूसकर फसल को नुकसान पहुंचाता है। पत्तियां मुड़ी हुई दिखाई देने लगती हैं। इस कीट को नियंत्रित करने के लिए आधा लीटर मोनोक्रोटोफॉस को 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। 500 मिली इमिडाक्लोप्रिड को 500 लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव किया जा सकता है।

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एफिड्स, ग्रीन एफिड्स और मक्खियाँ : इन कीटों को नियंत्रित करने के लिए मैलाथियान 50 ईसी का 1 लीटर या डाइमेथोएट 30 ईसी का आधा लीटर या मोनोक्रोटोफॉस 30 डब्ल्यूएससीए या क्विनालफॉस 25 ईसी का एक लीटर या मैलाथियान 5 प्रतिशत पाउडर का 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर इस्तेमाल करें।

ब्लैक लीफ वीविल और लीफ बीटल: इन कीटों को नियंत्रित करने के लिए क्विनालफॉस का 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए

मोठ की फसल में होने वाले अन्य कुछ रोग और नियंत्रण

पॉड बोरर: यह कीट फसल के पौधों की पत्तियों को खाकर फसल को नुकसान पहुंचाता है। इसकी रोकथाम के लिए मोनोक्रोटोफॉस 36 डब्ल्यू एसी या मैलाथियान 50 ईसी या क्विनालफॉस 25 ईसी आधा लीटर या क्विनालफॉस 1.5 प्रतिशत चूर्ण 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव/छिड़काव करना चाहिए। जरूरत पड़ने पर 15 दिन बाद दूसरा छिड़काव/छिड़काव किया जा सकता है।

पीला मोजेक विषाणु रोग: यह रोग मोठ की फसल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है। इसमें प्रभावित पत्तियां पूरी तरह पीली होकर आकार में छोटी रह जाती हैं। इसकी रोकथाम के लिए सफेद मक्खी जिसके माध्यम से यह रोग फैलता है, पर नियंत्रण जरूरी है। लक्षण दिखाई देते ही (मोठ में कोनसी स्प्रे करें) डाइमेथोएट 30 ईसी या मेटासिस्टॉक्स आधा लीटर और मेथालियोन आधा लीटर को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए।

धब्बा जीवाणु रोग:- इस रोग के कारण पौधे मुरझा जाते हैं। इस रोग के कारण पत्तियों, फलियों और तनों पर छोटे-छोटे गहरे भूरे रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। इसके नियंत्रण के लिए 200 ग्राम एग्रीमाइसिन को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए। मोठ के बीजों को 100 पीपीएम स्ट्रेप्टोमाइसिन के घोल में एक घंटे तक भिगोना चाहिए तथा सूखने के बाद 2 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर बोना चाहिए।

तना झुलसा रोग:– इस रोग के कारण पौधे मुरझाने लगते हैं।

इसके लक्षण दिखाई देने पर 2 किलोग्राम मैंकोजेब को 500 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए।

किंकल वायरस रोग:- इस रोग के लक्षण पत्तियों पर दिखाई देते हैं। इसके कारण पत्तियां मोटी और भारी हो जाती हैं। रोग के कारण पत्तियां झुर्रीदार भी हो जाती हैं। इसके नियंत्रण के लिए 750 मिली डाइमेथोएट 30 ईसी या मिथाइल डेमेटन 25 ईसी को 500 लीटर पानी में घोल बनाकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करना चाहिए। दूसरा छिड़काव 15 दिन बाद करना चाहिए।

सर्कोस्पोरा रोग:- इस रोग के कारण पत्तियों पर कोणीय भूरे लाल धब्बे बन जाते हैं। संक्रमित पौधों की निचली पत्तियां पीली होकर सूखने लगती हैं तथा पौधों की जड़ें भी सूख जाती हैं। इस रोग के नियंत्रण के लिए 500 ग्राम कार्बेन्डाजिम को 500 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करना चाहिए। बुवाई से पहले बीजों को 3 ग्राम कैप्टान या 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित करना चाहिए।

नोट – छिडकाव से पहले अपने कृषि विशेषग्य से विचार विमर्श अवश्य करे धन्यवाद