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आखिर क्यों जरुरी है जैविक खेती जैविक खेती का महत्त्व जानिए भारत में जैविक खेती का भविष्य

नमस्कार दोस्तों आज हम बात करेंगे भारत में जैविक खेती के महत्त्व के बारे में और भारत में जैविक खेती का क्या भविष्य है इसी के साथ हम चर्चा करेंगे कि किसान के लिए जैविक खेती क्यों जरुरी है आपसे निवेदन है यदि आप खेती करते हो या ना करते तो तो भी ये आर्टिकल आपके लिए बहुत जरुरी है इसे अंत तक पढ़े और अपनी राय देवे.

Organic Farming

भारत में जैविक खेती का भविष्य

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भारत में हरित क्रांति के समय उत्पादन में वृद्धि को देखते हुए ऐसी कोलोराडो का विकास हुआ जो अधिक से अधिक देशों के प्रति अधिक अनुप्रिया थी। इसके कारण से ईरान में उधारों का अर्थ अत्याधिक हुआ। इसके साथ ही इसी क्रम में कीट एवं पादप रोग नाशी एवं कोलोराडो नाका का भी प्रयोग बहुत अधिक हो गया जिससे उत्पादन में तो वृद्धि हुई लेकिन इससे होने वाले दूरगामी प्रभाव से लोग अनाभिज्ञ थे, इसके कारण संबंध, वातावरण, जल धीरे-धीरे कम हो गया।

वैराइटी आदिम प्रतीकात्मक के उपयोग से रासायनिक पदार्थ जो साधन संश्लेषित नहीं कर सके उनके संग्रह भूमि, मानव शरीर सागर तथा पर्यावरण में होने लगा इसी के प्रभाव से आज वैराइटी आदि वैशिष्ट्य का उपयोग नहीं हो पाता, जिसका मुख्य कारण इनका उपयोग से विलय के अवशेष जीवो की संख्या में अत्याधिक कमी का होना जो कि पोषक तत्वों में पोषक तत्व मखाने के अनुपलब्ध से उपलब्ध स्थिति में हैं। जिस पौधे के उपयोग में शामिल है मानव में खौसी, सबसे अधिक चिड़चिड़ापन, खुजली और भयानक कैंसर जैसे रोग हुए।

कैंसर ट्रेन

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इसके प्रमुख उदाहरण हैं बठिंडा से चलने वाली रेलगाड़ी का नाम लोगों ने कैंसर ट्रेन रख दिया क्योंकि ट्रेन में प्रिंस बिजय सिंह अस्पताल में कैंसर का इलाज और सस्ता इलाज होने के कारण पंजाब, हरियाणा और राजस्थान के श्रीगंगानगर, हनुमानगढ़, जिलों के लोग अन्य सिद्धांतों का अत्याधिक उपयोग होता है, वहां के लोग उपचार के लिए अधिक संख्या में आवेदन लेकर आते हैं।

इन सभी परिदृश्यों पर ध्यान दिया गया है, भारत सरकार ने 1990 से जैविक खेती को बढ़ावा देने का कार्य शुरू किया, जिसमें गति वर्ष 2000 के बाद हुई। क्योंकि आजादी से पूर्व की खेती में तकनीक का काफी अभाव होने के बाद भी जल, पर्यावरण एवं मानव स्वास्थ्य पर कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि उस समय की खेती में लगभग जैविक एवं सामुदायिक खेती का गठन किया गया था।

वर्तमान समय में भारत के किसानों के लिए जैविक खेती के विषय में एक बहुत बड़ा भ्रम है कि इसके उत्पादन में काफी कमी आ जाती है जबकि यह पूर्ण रूप से सही नहीं है, क्योंकि जैविक खेती में प्रमुख समस्या कीट, व्याधि प्रबंधन की आती है। , जिसके बारे में कई जैविक उपाय मौजूद हैं और इस दिशा में अब काफी शोध का कार्य चल रहा है जिनके परिणाम आने वाले वर्षों में प्राप्त होंगे और इसमें काफी शोध भी होंगे।

जैविक कृषि में ध्यान देने योग्य कुछ प्रमुख शस्य विधियां हैं, जिनका ई 5 टी -1 5 ने ध्यान दिया अगर किसान ने ध्यान दिया तो जैविक खेती में भी अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है, चार पांच साल में सफलता मिलेगी, लेकिन जैविक खेती करने के बाद उत्पादन पारंपरिक खेती में आना कम होगा। लगता है. यह प्रमुख शस्य जानकारी नीचे दी गई है

व्यावसायिक एवं व्यावसायिक का चयन

फसल एवं फसल का चयन किसान की भूमि पर जलवायु वाले पानी के दृश्य, आने वाले, क्षेत्र में किसी रोग व्याधि एवं लवणता को ध्यान में रखा गया उस पर लीज वाली लागत एवं किसान की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखना।
उस क्षेत्र में अमुक फसल के लिए निर्धारित समय पर ही करना चाहिए, पहले और अंतिम चरण में कीट, व्याधि और स्लीपर के प्रकोप के साथ उपज में भी कमी आती है। जैविक खेती स्थूल एवं सांद्रित खाद एवं जैविक पदार्थ भूमि में थोड़ी मात्रा में गहराई तक जोत कर मिलाना चाहिए क्योंकि कम गहराई में शामिल किया गया है जैविक खेती का नुकसान गर्मी का कारण अधिक होगा तथा • भूमि की सतह में नीचे की ओर की दूरी का तापमान कम होना चाहिए अधिकांश होने के कारण जीवो को बढ़ने का अनुकूल वातावरण मिलता रहेगा।

बीज दर

पौधों की संख्या किसी भी फसल या उसकी किस्म के प्रति हेक्टेयर पौधों की संख्या या पौधे से पौधे और पंक्ति से पंक्ति की दूरी उस क्षेत्र के कृषि विभाग की अनुशंसा के अनुसार होनी चाहिए। जब संख्या अधिक होती है तो पौधों के बीच नमी और आर्द्रता अधिक होने के कारण खेत को रोग बढ़ने के लिए अधिक अनुकूल वातावरण मिलता है और जब संख्या कम होती है तो खरपतवार तेजी से फैलते हैं। अतः यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया जाना चाहिए कि प्रति हेक्टेयर पौधों की संख्या विभाग द्वारा निर्धारित संख्या के करीब हो।

खाद्य एवं जैव उर्वरक

पौधों के पोषण के लिए उचित मात्रा में खाद को उसके स्थान से सही समय पर निकालकर खेत में मिलाने की समय सीमा अति शीघ्र होनी चाहिए अन्यथा पोषक तत्वों के क्षरण एवं वाष्पीकरण की प्रबल संभावना रहती है। खाद एवं उर्वरकों का प्रयोग करने से पहले यह पता लगाना आवश्यक है कि खाद पूरी तरह सड़ी हुई अवस्था में है या नहीं, अन्यथा बराबर न डालने से हर वर्ष खरपतवार, रोग एवं कीटों के प्रभाव के अलावा धन एवं श्रम की हानि होगी। उर्वरकों की मात्रा से मिट्टी नष्ट हो जायेगी। परिस्थिति के अनुसार ही प्रयोग करना चाहिए, अन्यथा मिट्टी में अम्लता बढ़ जाती है।

पौध संरक्षण एवं विकास

पौधों की सुरक्षा और वृद्धि के लिए विभिन्न प्रकार के जैव उत्पाद उपलब्ध हैं जैसे बीजामृत संजीवक, जीवामृत अमृतपानी, पंचगव्य राइजोबियम, एज़टोबैक्टर ट्राइकोडर्मा, पीएसबी आदि।

इसके उपयोग के लिए सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि इसके उपयोग के समय इसमें पाए जाने वाले जीव जीवित हैं, अन्यथा इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ता है, जिसके कारण किसान इसे एक प्रभावी नई मानते हैं, इसका मुख्य कारण इसका है। उत्पादन, रखरखाव और परिवहन। अनुकूल वातावरण का अभाव है।

वर्तमान परिस्तिथि

वर्तमान भारतीय परिस्थिति में जैविक खेती के लिए अनुकूल ज्ञान एवं प्रयुक्त सामग्री की कमी एवं उचित विपणन व्यवस्था के अभाव के कारण जैविक कृषि के क्षेत्र में तीव्र गति से विकास नहीं हो पा रहा है, जबकि भारत में कुछ पिछड़े क्षेत्र एवं वर्षा आधारित मोटा अनाज फसलें काफी हद तक जैविक होती हैं और दस फसलें, लघु फल और फसलें पूरी तरह से जैविक होने के बावजूद इसके प्रमाणीकरण के अभाव में किसानों को उनके उत्पादन का उचित मूल्य नहीं मिल पाता है।

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