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धान की फसल में लगने वाले रोगों से ऐसे करे बंचाव ,धान की फसल में लगाने वाले किट और उपचार

धान की प्रमुख बीमारियों ( धान की फसल में लगाने वाले किट ) और उनके नियंत्रण के उपायों की पूरी जानकारी यहां मिलेगी। धान की खेती में किसान भाई सबसे ज्यादा परेशान रहते हैं और वह है धान में तरह-तरह की बीमारियाँ। हमारे अधिकांश किसान भाई इन बीमारियों के बारे में नहीं जानते हैं। इससे कई बार समय पर इनका नियंत्रण न करने से धान की फसल को काफी नुकसान होता है. यदि हम धान की खेती में इन रोगों की पहचान कर समय पर नियंत्रण के उपाय करें तो फसल को बर्बाद होने से बचाया जा सकता है।

जानिए धान की फसल में कौन-कौन से प्रमुख रोग हैं और इन रोगों पर कैसे नियंत्रण किया जाए, इसकी जानकारी आपको यहां मिलेगी। किसान भाइयों से अनुरोध है कि वे यहां दी गई जानकारी को ध्यानपूर्वक पढ़ें। साथ ही बीमारियों के बारे में भी जरूर जानें. धान में लगने वाले प्रमुख रोग: पाउडरी मिल्ड्यू, खैरा रोग, शीथ ब्लाइट, पफी रोग, भूरा धब्बा, बैक्टीरियल ब्लाइट, बैक्टीरियल स्ट्राइप, फाल्स कंडुआ, पाउडरी मिल्ड्यू: यह रोग नर्सरी में आयरन की कमी के कारण अधिक होता है। नया पत्ता कागज की तरह सफेद निकलता है।

धान की फसल में लगने वाले प्रमुख रोग

खैरा रोग: यह रोग जिंक की कमी के कारण होता है। इस रोग में पत्तियाँ पीली पड़ जाती हैं, जिन पर बाद में भूरे रंग के धब्बे बन जाते हैं।

शीथ ब्लाइट: इस रोग में पत्ती के आवरण पर अनियमित आकार के धब्बे बन जाते हैं, जिनके किनारे गहरे भूरे तथा मध्य भाग हल्के रंग का होता है।

चूर्णिल फफूंदी: इस रोग में पत्तियों पर आंख के आकार के धब्बे बन जाते हैं, जो बीच में राख के रंग के तथा किनारों पर गहरे भूरे रंग के होते हैं। पत्तियों के अलावा बालियों, डंठलों, फूलों की शाखाओं तथा गांठों पर काले भूरे धब्बे बन जाते हैं।

धब्बा: इस रोग में पत्तियों पर गहरे भूरे रंग के गोल या अंडाकार धब्बे बन जाते हैं। इन धब्बों के चारों ओर एक पीला घेरा बन जाता है तथा मध्य भाग पीले भूरे रंग का होता है।

बैक्टीरियल ब्लाइट: इस रोग में पत्तियां सिरे या किनारे से पूरी तरह सूखने लगती हैं। सूखे किनारे अनियमित और टेढ़े-मेढ़े हो जाते हैं।

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जीवाणु धारी: इस रोग में पत्तियों पर शिराओं के बीच भूरे रंग की लंबी धारियां बन जाती हैं।

झूठा कंडुआ: इस रोग में बालियों के कुछ दाने पीले रंग के पाउडर में बदल जाते हैं, जो बाद में काले रंग में बदल जाते हैं।

धान में रोग का नियंत्रण कैसे करें?

बीजोपचार: जीवाणु झुलसा एवं जीवाणु धारी रोग के नियंत्रण हेतु 25 किलोग्राम बीज की दर से 4.0 ग्राम स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90 प्रतिशत + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत की दर से बुआई करनी चाहिए।

झुलसा रोग के नियंत्रण के लिए 2.50 ग्राम थीरम 75% WS या 2.0 ग्राम कार्बेन्डाजिम 50% WP प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार कर बुआई करनी चाहिए।

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शीथ ब्लाइट रोग के नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम 50% डब्लूपी 2.0 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करके बोना चाहिए।

   भूरा धब्बा रोग के नियंत्रण के लिए 2.50 ग्राम थीरम 75% WS या 4.0 ग्राम ट्राइकोडर्मा प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करके बोना चाहिए। फाल्स कंडुआ रोग के नियंत्रण के लिए कार्बेन्डाजिम 50% डब्लूपी की 2.0 ग्राम मात्रा प्रति किलोग्राम बीज की दर से बीजोपचार करके बोना चाहिए। खैरा रोग: बुआई/रोपण से पहले आखिरी जुताई के समय 20-25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से जिंक सल्फेट मिलाने से खैरा रोग का प्रकोप नहीं होता है.

बैक्टीरियल ब्लाइट/जीवाणुजनित रोगों के नियंत्रण के लिए बायोपेस्टीसाइड (जैव कवकनाशी) स्यूडोमोनास फ्लोरोसेंस 0.5% डब्लू.पी. का छिड़काव करना लाभकारी होता है। बुआई/रोपण से पहले 2.50 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से 10-20 किलोग्राम महीन रेत जैसे उर्वरक के साथ मिलाएं। उक्त जैव कीटनाशकों की 2.50 किलोग्राम मात्रा प्रति हेक्टेयर 100 किलोग्राम गोबर की खाद में मिलाकर लगभग 5 दिन तक रखने के बाद बुआई से पहले मिट्टी में मिला दें।

मृदा जनित रोगों के नियंत्रण के लिए (धान की फसल में लगाने वाले किट )

जैव कीटनाशक (जैव कवकनाशी) ट्राइकोडर्मा बर्डी 1% या ट्राइकोडर्मा हार्ज़ियानम 2% 2.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर 60-75 किलोग्राम अच्छी सड़ी गोबर की खाद में मिलाकर हल्के पानी के साथ 8-10 दिन तक छिड़काव करें। छाया। रखने के बाद बुआई से पहले आखिरी जुताई के समय इसे मिट्टी में मिला देने से शीथ ब्लाइट, मिथ कंडुआ आदि बीमारियों के प्रबंधन में मदद मिलती है.

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   राइस में झुलसा रोग की दवा धान में जीवाणु झुलसा रोग एवं जीवाणु झुलसा रोग के नियंत्रण के लिए 15 ग्राम स्ट्रेप्टोमाइसिन सल्फेट 90 प्रतिशत + टेट्रासाइक्लिन हाइड्रोक्लोराइड 10 प्रतिशत को 500 ग्राम कॉपर ऑक्सीक्लोराइड 50 प्रतिशत WP के साथ 500-750 लीटर पानी में घोलकर प्रति हेक्टेयर छिड़काव करें। आवश्यकता है

धान में झोंका रोग एवं अन्य रोग उपचार

धान में पफ रोग की दवा धान में पफ रोग के नियंत्रण के लिए निम्नलिखित रसायनों में से किसी एक रसायन को 500-750 लीटर पानी में प्रति हेक्टेयर घोलकर छिड़काव करना चाहिए। 1 कार्बेन्डाजिम 50% डब्लूपी 500 ग्राम 2 एडिफेनफॉस 50% ईसी 500 मि.ली. 3 हेक्साकोनाजोल 5.0% ईसी 1.0एल 4 मैन्कोजेब 75% डब्लूपी 2.0 किग्रा 5 ज़िनेब 75% डब्लूपी 2.0 किग्रा 6 कार्बेन्डाजिम 12% + मैन्कोजेब बी 63 प्रतिशत डब्लू.पी. 750 ग्राम 7 आइसोप्रोथापेलीन 40 प्रतिशत ईसी 750 मिली प्रति हेक्टेयर 8 कासुगामाइसिन 3 प्रतिशत मिली 1.15 लीटर प्रति हेक्टेयर

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धान में भूरा धब्बा रोग के लिए दवा धान में भूरा धब्बा रोग के नियंत्रण के लिए निम्नलिखित रसायनों में से किसी एक को 500-750 में घोलना चाहिए प्रति हेक्टेयर लीटर पानी मिलाकर छिड़काव करें। 1 एडिफेनफॉस 50% ईसी 500 मिली 2 मैंकोजेब 75% डब्लूपी 2.0 किग्रा 3 जिनेब 75% डब्लूपी 2.0 किग्रा 4 जिरम 80% डब्लूपी 2.0 किग्रा 5 थायोफिनेट मिथाइल 70% डब्लूपी 1.0 किग्रा . धान की फसल में लगाने वाले किट

नोट – किसान साथियो व्यापार अपने विवेक से करे हमारा उदेश्य सिर्फ किसानो तक जानकारी पहुँचाना है . किसी भी प्रकार के रसायन के छिडकाव से पहले अपने कृषि सलाहकार से सलाह जरुर करे . क्यूंकि हमने यह जानकारी अपने विवेक के आधार पर आप तक पहुंचाई है . किसी भी प्रकार के लाभ और हानि के लिए farming xpert जिमेवार नहीं है . धन्यवाद जय जवान जय किसान