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उत्पादन हो रहा मांग से भी ज्यादा फिर क्यों बढ़ रहे गेहूं के भाव, जानिए असली वजह

उपभोक्ता मामले विभाग के मूल्य निगरानी प्रभाग के अनुसार, 31 मार्च 2024 को देश में गेहूं की औसत कीमत 30.86 रुपये प्रति किलोग्राम थी। राष्ट्रीय कृषि बाजार यानी ई-एनएएम प्लेटफॉर्म पर यह भी पता चल रहा है कि देश के कई बाजारों में गेहूं की कीमत एमएसपी से ज्यादा है. रबी सीजन 2024-25 के लिए केंद्र सरकार ने गेहूं का MSP 2275 रु / क्विंटल तय किया है.

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गेहूं की कीमतों का यह हाल तब है जब महंगाई कम करने के नाम पर सरकार 8 फरवरी तक ओपन मार्केट सेल के तहत 80.04 लाख मीट्रिक टन गेहूं निजी और सहकारी क्षेत्र को महज 2150 रुपये प्रति क्विंटल की रियायती दर पर बेच चुकी है. योजना (ओएमएसएस)। . इतना ही नहीं, गेहूं का उत्पादन मांग से अधिक होने का अनुमान है और निर्यात भी बंद है. ऐसे में सवाल यह उठ रहा है कि इतना सब के बाद गेहूं की महंगाई आखिर कौन बढ़ा रहा है?

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सवाल यह है कि क्या व्यापारी, बड़ी श्रृंखला के खुदरा विक्रेता और गेहूं प्रोसेसर इसका स्टॉक कर रहे हैं? गेहूं को आसमान निगल गया या जमीन में समा गया। आखिर ऐसा क्या हुआ कि नई फसल आने के बावजूद गेहूं महंगा है. इस बीच सरकार ने महंगाई पर काबू पाने के लिए गेहूं व्यापारियों से स्टॉक घोषित करने का काम 1 अप्रैल के बाद भी जारी रखने को कहा है. इसका मतलब अपने आप में साफ है कि दिक्कत कहां से आ रही है. जैसे ही गेहूं किसानों के हाथ से निकलकर किसानों के हाथ में पहुंचता है, उसकी कीमत आसमान छूने लगती है।

उत्पादन मांग से अधिक है

दोस्तों किसी भी फसल के भाव बढ़ने के पीछे भी एक बड़ा कारण होता है. यह मांग और आपूर्ति के कारण है. यदि मांग अधिक है और आपूर्ति कम है तो सामान महंगा होगा। 2021 के बाद भी गेहूं की महंगाई जारी है. वहीं केंद्रीय कृषि मंत्रालय ने अपनी एक रिपोर्ट में संसद को बताया है कि 2021-22 में मांग 971.20 लाख टन थी. जबकि तब उत्पादन 1077.42 लाख टन था. बताया गया है कि फिलहाल देश में गेहूं की खपत करीब 1050 लाख टन सालाना है, जबकि उत्पादन इससे करीब 70 लाख टन ज्यादा है.

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उत्पादन कितना होगा

दोस्तों कृषि मंत्रालय के दिए गए आंकड़े के अनुसार, वर्ष 2023-24 में गेहूं का उत्पादन 1120.19 लाख मीट्रिक टन होने की सम्भावना मानी गयी है जो कि पिछले वर्ष के उत्पादन 1105.54 लाख मीट्रिक टन से 14.65 लाख मीट्रिक टन अधिक है। गेहूं का उत्पादन खपत से 70 लाख टन ज्यादा है. 13 मई 2022 से गेहूं का निर्यात भी पूरी तरह से बंद है। किसान निर्यात खुलने का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन घरेलू उपलब्धता बनाए रखने के लिए सरकार ने अभी तक इस पर रोक लगा रखी है। इसके बावजूद कीमत कम नहीं हुई.

सरकार को क्या दिक्कत आ रही है

पिछले दो सीजन से सरकार अपना खरीद लक्ष्य हासिल नहीं कर पाई है. रबी सीजन 2023-24 में सरकार द्वारा 341.5 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा गया था, लेकिन 2.62 लाख मीट्रिक टन गेहूं ही खरीदा जा सका. इसी तरह रबी विपणन सत्र 2022-23 में भी गेहूं खरीद का लक्ष्य पूरा नहीं हो सका. तब 444 लाख मीट्रिक टन की जगह सिर्फ 187.92 लाख मीट्रिक टन गेहूं ही खरीदा जा सका था. कारण यह है कि बाजार में कीमत एमएसपी से अधिक थी.

इसे देखते हुए केंद्र सरकार ने 2024-25 के लिए सिर्फ 320 लाख मीट्रिक टन गेहूं खरीदने का लक्ष्य रखा है, जो पहले से काफी कम है. अगर इस समय बाजार में कीमत एमएसपी से अधिक रही तो संभव है कि इस साल भी यह लक्ष्य हासिल नहीं हो सकेगा. अगर ऐसा हुआ तो सरकार 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन कैसे देगी? बफर स्टॉक के लिए पर्याप्त खरीद जरूरी है.